गुजरातः सड़क से हटेंगे नॉनवेज स्टॉल, प्रशासन का तर्क- इससे आहत हो रहीं हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं


भारतीय जनता पार्टी शासित वडोदरा और राजकोट नगर निगमों ने दुकानदारों और फेरीवालों को अंडे सहित मांसाहारी भोजन को हटाने के लिए कहा है। निगम के अधिकारियों का तर्क है कि मांसाहारी भोजन दिखने से हिंदू लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं। इसे लेकर अब राजनीति शुरू हो गई है। विपक्ष से लेकर मानवाधिकार संगठन इस फैसले के खिलाफ आगे आए हैं। 
 
गुजरात की वडोदरा और राजकोट नगर निगमों ने जारी आदेश में कहा है कि सार्वजनिक सड़कों पर लटका हुआ मांसाहारी भोजन हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करता है। उससे निकलने वाला धुआं स्वास्थ्य के लिए खतराक है और साथ ही ये स्टाल ट्रैफिक जाम पैदा करते हैं। इसलिए इन्हें मुख्य मार्ग से हटना चाहिए।

राजकोट के मेयर प्रदीप दाव के निर्देश पारित करने और एक अभियान शुरू करने के 48 घंटे बाद वडोदरा नगर निगम (वीएमसी) की स्थायी समिति के अध्यक्ष हितेंद्र पटेल ने भी नागरिक निकाय को मौखिक निर्देश जारी किए कि अगर वे अपने सामान को ठीक से ढककर न रख रहे हैं, तो सड़क किनारे के सभी नॉन-वेज स्टालों को 15 दिनों के भीतर हटा दें। 

संवाददाताओं से बातचीत में हितेंद्र पटेल ने कहा, “मांस, मछली, अंडे का सार्वजनिक प्रदर्शन धार्मिक भावनाओं को आहत करता है। यह दिखाई नहीं देना चाहिए।” उन्होंने कहा कि इस संबंध में निर्देश दिए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि यह प्रथा भले ही दशकों तक जारी रही हो, लेकिन अब इसे रोकने का समय आ गया है।
   
वीएमसी का निर्देश 9 नवंबर को राजकोट के मेयर प्रदीप दाव के इसी तरह के निर्देश से प्रेरित था, जिसमें नॉन-वेज फूड की बिक्री को हॉकिंग जोन में प्रतिबंधित करने के लिए किया गया था। प्रदीप दाव ने कहा, सड़क से गुजरने पर मांसाहारी भोजन लटका हुआ देखकर हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचती है।

आरएमसी स्टाफ ने पहले ही फुलछाब चौक, लिंबडा चौक और शास्त्री मैदान में नॉन-वेज फूड स्टॉल और कियोस्क हटा दिए हैं। इस बारे में पूछे जाने पर दाव ने शुक्रवार को संवाददाताओं से कहा, ”हम सिर्फ मुख्य सड़कों से अतिक्रमण हटा रहे हैं। वे उपद्रव करते हैं, ट्रैफिक जाम करते हैं और हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं।”

दोनों नगर निगमों को गुजरात के राजस्व मंत्री राजेंद्र त्रिवेदी का समर्थन मिला है। उन्होंने दावा किया था कि मांसाहारी खाद्य स्टालों से निकलने वाला धुआं और गंध स्वास्थ्य के लिए खतरा है। उन्होंने कहा, “इन नॉन-वेज स्टालों से निकलने वाला धुआं और गंध राहगीरों के लिए स्वास्थ्य के लिए खतरा है।” उन्होंने कहा था कि फुटपाथ लोगों के लिए है, इन स्टॉल के लिए। इसलिए इन स्टॉलों और कियोस्क को हटाया जाना चाहिए।

विपक्ष का अल्पसंख्यकों से रोजगार छीनने का आरोप
वीएमसी में विपक्ष के नेता अमित रावत ने कहा, ‘कोई भी राजनीतिक दल या सरकार यह तय नहीं कर सकती कि किसे क्या और कहां खाना चाहिए। इसके अलावा, फेरीवालों को आजीविका के अधिकार के साथ-साथ अन्य पते के मुद्दों को सुनिश्चित करने के लिए 2013 में एक स्ट्रीट वेंडर अधिनियम पारित किया गया था। लेकिन वे इसे लागू नहीं करना चाहते। अब वे उन विक्रेताओं को हटाना चाहते हैं, जो पिछले लगभग दो वर्षों से पीड़ित हैं।”

 वहीं, गुजरात कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अर्जुन मोढवाडिया ने कहा, “यह पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों के प्रति भाजपा की अवमानना ​​का एक और प्रतिबिंब है। वे जानते हैं कि दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक मांसाहारी खाते हैं। इसके अलावा, वे हमारे जीवन में सब कुछ तय करना चाहते हैं।”

उधर, मानवाधिकार कार्यकर्ता और वडोदरा के प्रख्यात पर्यावरणविद् रोहित प्रजापति ने पूछा है, “वे भारत के संविधान के किस कानून और किस प्रावधान के तहत ये निर्देश जारी कर रहे हैं? वहां कोई नहीं है। दरअसल, वे भारत की संसद द्वारा पारित स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट का उल्लंघन कर रहे हैं।”



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