प्रज्ञा गुप्ता
लोग कहते क्या हैं,
लोग करते क्या हैं,
माना जीना आसान नहीं,
पर मरना भी तो आसान नहीं।
इस बुढ़ापे में जब कोई पूछता नहीं,
तो याद जवानी की आती है वही।
तो सोचता हूं छोड़ दूं यह जिंदगी,
पर यह भी तो आसान नहीं।।
व्यथा है ये सारी मेरी बुनी हुई ,
पर अब इससे निकलूं कैसे
बाहर ये तो पता ही नहीं।
माना जीना आसान नहीं,
पर मरना भी तो आसान नहीं।।
तो ठाना है अब, जी लूंगा हजार पल,
हर एक एक पल में।।
पूरे करूंगा जिंदगी के सारे ख्वाब ,
और अब जीना इतना मुश्किल भी तो नहीं!!
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